Hashim Musa,
आज हम बात करेंगे उस शख्स की, जिसने 2025 के Pahalgam terror attack से लेकर कश्मीर घाटी में हुए कई बड़े आतंकी हमलों तक आतंक का जाल फैलाया। हाशिम मूसा, जिसे कुछ लोग सुलैमान मूसा के नाम से भी जानते थे, असल में पाकिस्तान आर्मी के स्पेशल सर्विस ग्रुप यानी SSG का कमांडो था। लेकिन कट्टरपंथी सोच और अनुशासनहीनता के कारण उसे सेना से बाहर कर दिया गया और फिर वह आतंक की राह पर चल पड़ा।
इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि हाशिम मूसा कौन था, कैसे वह लश्कर-ए-तैयबा का मास्टरमाइंड बना, Pahalgam terror attack की पूरी कहानी और आखिर में कैसे भारतीय सुरक्षा बलों ने ऑपरेशन महादेव में उसे ढेर कर दिया।
हाशिम मूसा पाकिस्तान के पेशावर का रहने वाला था। पाकिस्तान आर्मी की सबसे खतरनाक यूनिट SSG (Special Service Group) में उसने कमांडो ट्रेनिंग ली। यहां उसे गुरिल्ला युद्ध, आधुनिक हथियारों का इस्तेमाल और जंगलों में छुपकर हमला करने की ट्रेनिंग मिली। यही ट्रेनिंग बाद में आतंकवाद में उसके सबसे बड़े हथियार बनी।
कुछ समय बाद मूसा को सेना से बाहर कर दिया गया। लेकिन सेना से बाहर होने के बाद भी उसका हथियारों और ऑपरेशन चलाने का अनुभव बरकरार रहा, जो आगे चलकर बहुत खतरनाक साबित हुआ।
SSG से बाहर निकलने के बाद हाशिम मूसा ने लश्कर-ए-तैयबा का दामन थाम लिया। लश्कर को उसकी ट्रेनिंग और फील्ड अनुभव की सख्त जरूरत थी। उसने मूसा को जल्दी ही संगठन के ऑपरेशनल प्लानर और मास्टरमाइंड के तौर पर इस्तेमाल करना शुरू कर दिया।
मूसा के पास गुरिल्ला ऑपरेशन, जंगलों में हमला, सैटेलाइट फोन के जरिए नेटवर्क चलाना जैसे कई हुनर थे। इसी वजह से वह जल्द ही लश्कर की आतंकी गतिविधियों की रीढ़ बन गया।
22 अप्रैल 2025 को कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने पूरे देश को दहला दिया। इस हमले में 26 निर्दोष लोग मारे गए। जांच एजेंसियों को शुरुआती साक्ष्य से ही यह साफ होने लगा था कि इसके पीछे कोई बेहद प्रशिक्षित आतंकवादी है।
कॉल इंटरसेप्ट, फोरेंसिक जांच और लोकल ओवरग्राउंड वर्कर्स की गिरफ्तारी के बाद सामने आया कि इस हमले का मास्टरमाइंड हाशिम मूसा ही था। मूसा ने इस हमले को बेहद सुनियोजित तरीके से अंजाम दिलवाया था।
हाशिम मूसा की सबसे खतरनाक ताकत थी उसकी SSG कमांडो ट्रेनिंग। उसे गुरिल्ला हमला, घने जंगलों में छुपना, सैटेलाइट फोन से ऑपरेशन को कंट्रोल करना, हाईटेक हथियार चलाना – सब कुछ आता था।
वह सिर्फ खुद नहीं लड़ता था, बल्कि दूसरों को भी ट्रेनिंग देता और हमलों की योजना बनाता था। इसीलिए वह घाटी में लश्कर का सबसे भरोसेमंद ऑपरेशनल मास्टरमाइंड बन गया था।
22 अप्रैल के हमले के बाद मूसा दो महीने तक छुपा रहा। लेकिन 26 जुलाई को अचानक उसका सैटेलाइट फोन चालू हो गया, जिससे सुरक्षा एजेंसियों को उसकी लोकेशन का सुराग मिला।
28 जुलाई 2025 को सेना, CRPF और जम्मू-कश्मीर पुलिस ने श्रीनगर के पास दाचीगाम के हरवन फॉरेस्ट में ऑपरेशन महादेव चलाया। कई घंटे चले एनकाउंटर के बाद मूसा समेत तीन आतंकियों को ढेर कर दिया गया।
उनके पास से M4 राइफल, AK-47, ग्रेनेड और वही सैटेलाइट फोन बरामद हुआ जिसने मूसा की आखिरी लोकेशन बताई थी।
मूसा की मौत के बाद लश्कर-ए-तैयबा के नेटवर्क को बड़ा झटका लगा। नए हमलों की साजिशें रुक गईं, लोकल ओवरग्राउंड वर्कर्स में डर फैल गया और कई लोगों ने खुद ही सरेंडर कर दिया।
सुरक्षा एजेंसियों को भी पकड़े गए आतंकियों और OGWs से नई जानकारी मिली, जिससे घाटी में और भी सटीक ऑपरेशन कर पाए। इससे कश्मीर में शांति बहाल करने की कोशिशों को ताकत मिली।
बिंदु | जानकारी |
---|---|
नाम | हाशिम मूसा (सुलैमान मूसा) |
संगठन | लश्कर-ए-तैयबा |
पृष्ठभूमि | पाकिस्तान आर्मी SSG का पुराना कमांडो |
बड़ा गुनाह | 22 अप्रैल 2025 का पहलगाम हमला (26 लोगों की मौत) |
ऑपरेशन | ऑपरेशन महादेव, 28 जुलाई 2025 |
जगह | दाचीगाम, श्रीनगर |
बरामद हथियार | M4 राइफल, AK-47, ग्रेनेड, सैटेलाइट फोन |
क्यों खास | लश्कर का बड़ा मास्टरमाइंड और ऑपरेशनल प्लानर |
मूसा सिर्फ हमले नहीं करवाता था, बल्कि घाटी में अपना नेटवर्क भी मजबूत करता था। वह स्थानीय युवाओं को बहला-फुसलाकर आतंक की राह पर लाता, हथियार सप्लाई के रास्ते बनाता और ओवरग्राउंड वर्कर्स की मदद से इंटेल जुटाता था।
यही वजह थी कि वह हमलों की प्लानिंग से लेकर उसे अंजाम देने तक हर स्तर पर शामिल रहता था।
मूसा टेक्नोलॉजी का भी बखूबी इस्तेमाल करता था। वह सैटेलाइट फोन, एनक्रिप्टेड चैट ऐप्स और ड्रोन से सुरक्षा बलों की मूवमेंट पर नजर रखता था।
इससे वह किसी भी समय अपने ठिकाने बदल लेता और लंबे समय तक पकड़ से बाहर रहता।
मूसा की मौत के बाद लश्कर का ऑपरेशनल नेटवर्क कमजोर हुआ। लोकल OGWs में डर फैला, कई लोग संगठन से दूर हुए। सुरक्षा एजेंसियों का मानना है कि मूसा की मौत के बाद घाटी में बड़े आतंकी हमलों की संख्या में कमी भी आई।
हमले के बाद सबसे बड़ी चुनौती थी मूसा तक पहुंचना और उसके नेटवर्क को खत्म करना। कॉल इंटरसेप्ट, फोरेंसिक सबूत और OGWs से मिली जानकारी की मदद से ही ऑपरेशन महादेव संभव हो पाया।
इससे यह भी साबित हुआ कि तकनीक और खुफिया जानकारी आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में कितनी अहम भूमिका निभाती है।
हाशिम मूसा की कहानी यह दिखाती है कि कैसे एक प्रशिक्षित कमांडो जब कट्टरपंथ की राह पर चल पड़ता है तो कितनी तबाही मचा सकता है। लेकिन उसका खात्मा बताता है कि सच्चाई और सुरक्षा बलों की मेहनत के सामने आतंक की हार तय है।
ऑपरेशन महादेव में उसकी मौत न सिर्फ एक आतंकी की हार थी, बल्कि घाटी में शांति की दिशा में एक बड़ी जीत भी थी।
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